Wednesday, March 23, 2011

चलो हार जाएँ सवालों से अब हम


चलो हार जाएँ सवालों से अब हम

के लड़ने से इनके हौसले बढ हैं



जो अपने नहीं थें उनके हुए हम

जो अपने थें उनसे फासले बढ़ हैं



चलो झूठ का इक चोला पहन लें

सच टूटने के सिलसिले बढ़ रहे हैं



कहीं रह ना जाएँ अकेले सफ़र में

यहाँ हर नज़र काफिले बढ़ रहे हैं



.....what it takes to convert a thought to poem is still not known to me...all I know by now, is that there's something in the way you hold your pen....

1 comment:

shephali said...

poem to achi hai hi


aaj ye padh kar
..what it takes to convert a thought to poem is still not known to me...all I know by now, is that there's something in the way you hold your pen....


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