अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Wednesday, March 23, 2011
चलो हार जाएँ सवालों से अब हम
चलो हार जाएँ सवालों से अब हम
के लड़ने से इनके हौसले बढ हैं
जो अपने नहीं थें उनके हुए हम
जो अपने थें उनसे फासले बढ़ हैं
चलो झूठ का इक चोला पहन लें
सच टूटने के सिलसिले बढ़ रहे हैं
कहीं रह ना जाएँ अकेले सफ़र में
यहाँ हर नज़र काफिले बढ़ रहे हैं
.....what it takes to convert a thought to poem is still not known to me...all I know by now, is that there's something in the way you hold your pen....
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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(One of the four topics for essay from UPSC paper 2012) Sharaabiyon ko akeedat hai tumse, jo tu pilade to paani sharaab ho jaaye Jis...
1 comment:
poem to achi hai hi
aaj ye padh kar
..what it takes to convert a thought to poem is still not known to me...all I know by now, is that there's something in the way you hold your pen....
pata chala ki kaise likhi jaatin hai kavitayen
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