Monday, August 13, 2012

ये खलिश और ये जवानी भी

ये खलिश और ये जवानी भी 
ख़त्म होगी मेरी कहानी भी 

आप की चाहतों की बारिश में 
खिल उठी इक ग़ज़ल पुरानी भी 

अपनी मजबूरियाँ ये तकलीफें 
कुछ कही कुछ पड़ी छुपानी भी 

खैर अफ़सोस तो रहेगा ही
खो गयी प्यार की निशानी भी

जो न मिलते कभी भी उनसे तो
यूँ न होता गुहर ये पानी भी

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

चाह्तों की बारिश में
यूँ ही भीगते रहे आप
इसी तरह एक सुंदर
गजल साथ साथ ही
लिखते भी रहें आप !!

Rajesh Kumari said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति शुभकामनायें

मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)