अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Monday, August 13, 2012
हर रूप में तुमको देख लिया
हर रूप में तुमको देख लिया
हर रूप तुम्हारा प्यारा है
मैं फिर गुस्ताखी कर बैठा
कागज़ पर हुस्न उतारा है
दिल को बहलाकर देख लिया
तुमसे न कह कर देख लिया
मैं भूल गया था पहला प्यार
तुमसे ही प्यार दोबारा है
चाहा था कहना मंदिर में
पर सोच रहा था अपने गम
मेरी नैया मझधार प्रिये
दूर कहीं पे किनारा है
मैं आज भी अक्सर जाता हूँ
उस मंदिर तक, उन झूलों तक
वो मीठी हँसी भोली बातें
यादों में ऐसे संवारा है
कुछ न कहना गर हैराँ हो
मेरे दिल की इस कविता पर
मैं तन्हा तन्हा जी लूँगा
काफी इतना भी सहारा था
जाते जाते इक आखिरी बार
मेरे हमदम मुझसे मिल लो
मैं जानता हूँ इस जीवन में
इतना ही साथ हमारा है
-ckh
मेरे सच्चे शेर
बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow) दरख़्तों को शिकायत है के तूफ़ाँ ...
-
(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
-
(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
-
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
3 comments:
वाह चक्रेश....
बहुत बढ़िया..
दिल को बहलाकर देख लिया
तुमसे न कह कर देख लिया
मैं भूल गया था पहला प्यार
तुमसे ही प्यार दोबारा है..........
बेहद सुन्दर!!!
अनु
:')
shukriya sir
Post a Comment