Friday, October 19, 2012

एक लैंप पोस्ट दबी ज़ुबान में



सर्द रात सुनसान सड़क पर
घनघोर अंधेरों की थी जब चादर
एक लैंप पोस्ट दबी ज़ुबान में 
अपना अस्तित्व बताता था 

पूर्वा के ठन्डे थप्पड़ से
जब मुरझाईं कलियाँ कपास की 
खेतों में जब मातम था तब
एक लैंप पोस्ट दबी ज़ुबान में 
अपना कुछ दर्द सुनाता था

गाँव को जाती सूनी सड़कों पर
कुछ छीटे थे लाल खून के 
किसी किसान की मजबूरी पर
एक लैंप पोस्ट दबी ज़ुबान में 
कुछ कह कर के चुप हो जाता था

-ckh

No comments:

मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)