Wednesday, April 7, 2010

एक तस्वीर

एक तस्वीर..
..अनभिज्ञ..
दर्शक की आँखों से
आज्ञाकारी, सुशील पुत्री सी
कलाकार पिता की तुलिका का मान रखती
एक संस्कृति को अपने आप के संजोये
मानो किसी आदेश का पालन करती
या किसी कपिल मुनि के शाप
से पत्थर बनी अहिल्या सी
राम के पद कमलों के स्पर्श की प्रतीक्षा में
सदियों से
चिपकी हुई है इन गुफाओं की पथरीली कठोर छाती पर

मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)