Saturday, April 10, 2010

कुछ पन्ने थें अधूरे दिल की किताब के

कुछ पन्ने थें अधूरे दिल की किताब के
कुछ लिखा मिटा गए ये छीटे शराब के

सब-ऐ-फुरकत गुजारी मैकदे में कुछ ऐसे
चर्चे सारी रात चलें उन्ही के शबाब के

सिलवट नहीं चेहरे पर कोई शिकन न थी
रात दाग भी न था हुस्न पर माहताब के

फिर सय्याद दिन का तीर आँखों में चुभ गया
तनहाइयों से घिर गए सिलसिले टूटे खाब के

टुकड़ों से खाबों के कोई शिकवा नहीं लेकिन
चुभने लगे हैं ताने अब जहाँ-ने-खराब के

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मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)