तीरे नज़र का दोष है
मारा मारा फिरे है वो
तुमने ऐसा क्या किया
बेचारा फिरे है
तू दिल-फरेब है यहाँ
महफ़िल सजा रहा
क्या पता किसी सह्रांव में
बेसहारा फिरे है वो
इश्क का कसूर है
कुछ होश नहीं उसे
आप का है करम
नाकारा फिरे है वो
आपने घर सजा लिया
हंस कर रकीब संग
आज तलक आस में
कंवारा फिरे है वो
जाना न मज़ार-ऐ-कैश पे
वो अब नहीं वहाँ
कहते हैं आज कल कहीं
आवारा फिरे है वो
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
मेरे सच्चे शेर
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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2 comments:
चक्रेश जी ,आपकी लेखनी की उत्त्कृष्टता और सततता सराहनीय है अपनी निज व्यस्तता के बाद इस ख़ूबसूरती से हिंदी जगत आलोकित करना प्रशंसनीय है
इश्वर आपकी लेखनी की स्याही को सदाव विभिन्न रंगों से सजाता रहे
Dhanyaavad Dev ji,,sach mein jeevan kaafi vyast ho gaya hai...aap logon ka protsaahan hi hai ke kuch likh paata hun...
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