Monday, November 29, 2010

फूल खुशबू के लिये बागों को फिजायें चाहियें

फूल खुशबू के लिये बागों को फिजायें चाहियें
मुझको हंसने के लिए किसकी रजायें चाहियें

लडखडाता रह न जाऊं मैं ठोकरें खाता हुआ
थाम लें जो मुझको अब आज वो बाहें चाहियें

घुटता है दम कैफियत है सांस भारी हो रही
जिंदगी जीने की खातिर ताज़ी हवायें चाहियें

भर न पायें जख्म मेरे याद कर के बीती बात
याद करके भूल जाने की अदायें चाहियें

कसते हैं जो तंज सूरत पर मेरी इस शहर में
ऐ खुदा उनको मेरी माँ सी निगाहें चाहियें




राजयें*: is word ki meaning confirm karni hai mujhe....

4 comments:

chakresh singh said...

dhanyavaad uday ji

Unknown said...

umda gazal..........

achhi lagi..badhai !

chakresh singh said...
This comment has been removed by the author.
संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत गज़ल

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