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प्रथम अनुभूति
-सुगंध-
पथ भ्रांत पथिक पूछ बैठा मुझसे
फिर वही पुराना हास्यास्पद इक सवाल
अपनी हंसी दबाये, उसकी भावना को ध्यान में रख
गंभीर मुद्रा बना एक सोच में डूब गया मैं
और फिर कह दिया कि,
"मुझे नहीं पता"
इन कहाँ से आया, कहाँ चला के प्रश्नों को
एक पोटली में रख कर
मैं बहता आया हूँ जीवन - मरण, जड़- चेतन,भूत भविष्य के इस अविराम बहती रहने वाली गंगा में
ये मान लिया है के कहीं आगे कोई विशाल सागर होगा
जहाँ पोटली लहरों के ठन्डे थपेड़ों से टूट जायेगी
और समय के साथ राख बन चुके सब सवाल
धीरे धीरे ऊपर कि उथल पुथल से कहीं नीचे जाकर
कहाँ से आया, क्यूँ आया, कहाँ चला के हास्यास्पद सवालों पर आंसू बरसाते
समां जायेंगे ज्ञान के अथाह सागर में ....
प्रकृति के रहस्यमय सूत्र सभी
एक एक कर के खुलते जायेगे
सभी सवाल अश्रू संग घुलते जायेंगे
घुलते जायेंगे
घुलते जायेंगे
और फ़ैल जायेगी एक लम्बे चक्र के महान समापन पर
एक दिव्य भीनी सी सुगंध
ckh