Thursday, January 19, 2012

वक़्त के हौसले भी कोई कम नहीं

वो मुझे छोड़ कर दूर जाने लगा,
एक गुज़रा समाँ याद आने लगा;
 
सर्द रातें तूफानी रुलाने लगीं,
और दिल ये फ़साने सुनाने लगा;
 
जख्म गहरे थें सारे मगर ऐ खुदा,
सोच उनको मैं दामन छुपाने लगा;
 
इतने पर भी मैं जिंदा खड़ा था मगर,
मेरा साया आईना दिखाने लगा;
 
खौलता है लहू और उठता धुवाँ,
लाल आँखों में अँधेरा छाने लगा;
 
वक़्त के हौसले भी कोई कम नहीं,
हर कदम पर मुझे आजमाने लगा;

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मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)