ऐ ज़िन्दगी तू बिकुल ऐसी ही रह सकेगी क्या
सारे दोस्त यार बगल के कमरें में बैठे
हस्ते रहें
उनकी आवाजें मुझतक आती रहे
मैं यहाँ खामोश
अकेला
इस कमरे में
यूँही बैठा रहूँ
गर्म पलकों की सुस्त झपकी पर
कुछ सोछों
सोच कर मुस्काऊँ
ऐ ज़िन्दगी तू बिलकुल ऐसी ही रह सकेगी क्या ?
यूँही रह रह कर
कोई आता रहे जाता रहे
मेरे कमरे में
और मैं यहाँ यूँही लिखता रहूँ
सुनाता रहूँ उलझी हुई आवाजें
2 comments:
बढ़िया बने हैं बंधू |
बधाई ||
than k you sir :)
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