Tuesday, March 13, 2012

यार तुम मिलो तो सही

कुछ कहूं
कुछ सुनूं
कह सकूं
सुन सकूं
दोस्त थे तुम मेरे 
मैं कभी बन सकूं
हो ये सब कुछ मगर
हाथ में हाथ हो
कोई शाम साथ हो 
यार तुम मिलो तो सही !!!

क्या कहा
क्या किया
रात दिन
सुबह शाम
चाँद से
ख्वाब में
कौन सी बात की ?
कब उठा
कब नहीं
जीता क्या 
 हारा कर
यार ये सब हुआ
और मैं ढूँढता हूँ कहीं हो जो तुम
हो गुजर रही यूँही
जिंदगी तुम्हारी भी
पर मगर
क्या करूँ सामने जो तुम नहीं
क्या कहूं
क्या करूँ
जीत में हार में
सांस की हर पुकार में
हो मगर दूर हो
यार तुम मिलो तो सही



8 comments:

रविकर said...

इन्तजार की इन्तिहा, इम्तिहान इतराय ।

मिलो यार अब तो सही, विरह सही न जाय ।।

दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com

chakresh singh said...

thank you sir

मेरा मन पंछी सा said...

कुछ कहने ,सुनने के लिए मिलना
तो जरुरी है |||
बहुत ही सुन्दर रचना...:-)

लोकेन्द्र सिंह said...

बहुत खूब.....

chakresh singh said...

bahut shukriya ..badi meharbaani...hoozoor aap aaye

I thank everyone a lot for coming and encouraging me.

Thanks

chakresh singh said...
This comment has been removed by the author.
avanti singh said...

badhiya rachna,bdhai aap ko

virendra sharma said...

जिंदगी तुम्हारी भी
पर मगर
क्या करूँ सामने जो तुम नहीं
क्या कहूं
क्या करूँ
जीत में हार में
सांस की हर पुकार में
हो मगर दूर हो
यार तुम मिलो तो सही
कविता तो कविता दिनेश भाई की टिपण्णी भी लाज़वाब .

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