काबिल-ऐ-गौर हैं मेरी सांसें
मैकदे छूट गयें, ये ना छूटीं
आज भी आती हैं ये जाती हैं
ख्वाब तो रूठ गयें, ये ना रूठीं
चाह कर भी न कह सके उनसे
वो मेरी बेबसी पे हँसते थें
वक़्त खामोश कर गया उनको
जो मेरी दिलगी पे हँसते थें
--saving for future--
2 comments:
बहुत खूब.....
सुन्दर कविता....
अनु
thanks anu ji.....ye dono hi adhoori teh gayeeN ....
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