Sunday, July 8, 2012

जाने ये लोग


जाने ये लोग कैसे गाते हैं
हम तो हर धुन ही भूल जाते हैं

घर की दीवारें या के आईने
जाने क्यूँ मुझपे मुस्कराते हैं

बेसबब तो नहीं ये उनके ग़म
कुछ तो है आज भी सताते हैं

ख़त वो लिखते ज़रूर होगें पर
नामाबर ही इधर न आते हैं

शाम आई कई सवालों संग
फिर से हम घर को लौट जाते हैं

-ckh

1 comment:

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह..
बहुत सुन्दर......

अनु

मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)