मैं ही हूँ या हर कोई इस रात से हैरान है
ये अँधेरे मेरे हैं या अंधेर में इंसान है ?
टेक देता पत्थरों पे सर मगर मैं क्या करूँ
जानता हूँ क्या हूँ मैं और कौन वो भगवान् है !
जान लेलोगे मेरी गर सच जुबाँ पर आ गया
कैसे कह दूं क्या है ख्वाहिश क्या मेरा अरमान है
देखता हूँ उगते सूरज को उठाकर जब नज़र
खौलने लगती हैं सांसें उठता फिर तूफ़ान है
ऐ विधाता जानता ना मैं अभी के क्या है तू
पर मैं इतना जानता हूँ मुझसे तेरी पहचान है
1 comment:
बहुत बढ़िया.......
अनु
Post a Comment