Monday, August 13, 2012

हर रूप में तुमको देख लिया


हर रूप में तुमको देख लिया
हर रूप तुम्हारा प्यारा है
मैं फिर गुस्ताखी कर बैठा
कागज़ पर हुस्न उतारा है

दिल को बहलाकर देख लिया
तुमसे न कह कर देख लिया
मैं भूल गया था पहला प्यार
तुमसे ही प्यार दोबारा है

चाहा था कहना मंदिर में
पर सोच रहा था अपने गम
मेरी नैया मझधार प्रिये
दूर कहीं पे किनारा है

मैं आज भी अक्सर जाता हूँ
उस मंदिर तक, उन झूलों तक
वो मीठी हँसी भोली बातें
यादों में ऐसे संवारा है

कुछ न कहना गर हैराँ हो
मेरे दिल की इस कविता पर
मैं तन्हा तन्हा जी लूँगा
काफी इतना भी सहारा था

जाते जाते इक आखिरी बार
मेरे हमदम मुझसे मिल लो
मैं जानता हूँ इस जीवन में
इतना ही साथ हमारा है

-ckh


3 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह चक्रेश....
बहुत बढ़िया..
दिल को बहलाकर देख लिया
तुमसे न कह कर देख लिया
मैं भूल गया था पहला प्यार
तुमसे ही प्यार दोबारा है..........

बेहद सुन्दर!!!
अनु

chakresh singh said...

:')

chakresh singh said...

shukriya sir

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