Thursday, June 7, 2012

मासूम से सवाल में, उलझा रखा है दिल


मासूम से सवाल में, उलझा रखा है दिल ;
इक बावले ख़याल में, उलझा रखा है दिल ;

जीते थें जिस निगाह पर, हर शै निसार कर; 
उसने ही तो रुमाल में, उलझा रखा है दिल ;

यूँ तो किसी उम्मीद का, हमपर असर नहीं;
पर दिन महीने साल में, उलझा रखा है दिल; 

कुछ था न कुछ ले आये थें, महफ़िल में तेरी हम; 
देखो मगर मलाल में, उलझा रखा है दिल;

ठोकर में रख चले सभी, आराईशों को हम 
तुम हो के किस बवाल में, उलझा रखा है दिल 






आराईशों: embellishments.




-ckh-

5 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया गज़ल......

अनु

chakresh singh said...

शुक्रिया अनु जी

-ckh-

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत बढ़िया


सादर

Anjani Kumar said...

जीते थें जिस निगाह पर, हर शै निसार कर;
उसने ही तो रुमाल में, उलझा रखा है दिल ;

प्यारी ग़ज़ल .....

chakresh singh said...

dhanyavad

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...