जिंदगी की नज़र जीते जी हो चले
क्या पता कब कहाँ खुद
को हम खो चले
आखिरी नींद क्या सोच कर सोइए
जाने अनजाने में कैद फिर हो चले
चाह कर चैन को चैन ही खो दिया
कर्म फल बांचते कुछ नया बो चले
भागवद सार फिर घोल कर पी गए
हाथ को युद्ध में रक्त से धो चले
2 comments:
बेहतरीन....................
बधाई.
अनु
शुक्रिया अनु जी
-ckh-
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