Wednesday, June 27, 2012

ये शायर मुहब्बत के काबिल नहीं है



ये शायर मुहब्बत के काबिल नहीं है 
किसी की ख़ुशी में ये शामिल नहीं है 

मगर गौर देकर खामोशी भी सुनना 
ये चुप हो गया है ये संघदिल नहीं है 


सुना है के कहता था धुत हो नशे में 
हयात-ऐ-खलिश का कोई हासिल नहीं है 



भला कैसे समझें सबब आंसुओं का 
न आशिक ही है ये, ये बिस्मिल नहीं है 


ये दरिया है शायद इसे तुम न समझो 
बेगाना मगर इससे साहिल नहीं है 

1 comment:

Unknown said...

waaaaaah Chakreshbhai............

उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही

  उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं  रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा  ख़ुद के हा...