Saturday, June 9, 2012

कर्ण - अर्जुन


युद्ध की पुकार पर
उठ रही ललकार पर
नसों में खौलने लगा
लाल लाल खून फिर

अकड़-अकड़ रह गयीं  
हाथ  की  उंगलियाँ  
भवों  के  मध्य गर्जना 
कर उठीं  बिज़लियाँ  

सूत  पुत्र कर्ण   फिर
आग उगलने लगा
सहस्त्र सूर्यों सा किसी 
सेनाएं निगलने लगा 

दूर खड़ा देखता 
दोस्त की चढ़ान को 
बहुबलि योद्धा की  
इस  नयी उड़ान को
जोर जोर हंस रहा 
दुर्योधन हाथ उठा उठा 
और गुरु द्रोण को 
सूर वीर दिखा दिखा 

देख क्रिपाचार्य को 
जोर से फिर कहा 
साक्षात काल कर्ण 
कौन है अब बड़ा ?

पर ये आग थम गयी
सांस सांस जम गयी 
चार चार स्वेत अश्व
दैवीय रथ लिए 
भीड़ चीरते हुए  
सामने आ गए 

दो घड़ी को युद्ध को 
विराम सा लग गया 
कुरुक्षेत्र मद्ध्य था
दृश्य ये कुछ नया 

सारथी कृष्ण और 
पार्थ थें साथ साथ
सर्वश्रेठ योद्धा 
लिए गांडीव हाथ 

सावधान कर्ण!  कह
वाण छोड़ने लगा 
कर्ण के अभिमान को
अर्जुन तोड़ने लगा






 












...... to be continued....

1 comment:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर.................

anxiously waiting for the next post.........

anu

उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही

  उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं  रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा  ख़ुद के हा...