Friday, April 16, 2010

अंतिम दिन जीवन के

अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ

प्राण कंठ तक आ पहुंचें हों
भाव मुखरित न होते हों
प्यासा हो मन पाने को प्रिय को
बैरी नयन धुंधला जाएँ

शिथिल पड़ता मेरा शरीर हो
धमनियों में हो मद्धम रक्त प्रवाह
और बीते पल एक एक करके
मस्तिष्क पटल परछा जाएँ

चित्त चिता की राह ताकता
मृत सैया पे लेटा हो
आगे बढ़ कर दाग दे कोई
धुवां राख सब हो जाए

अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ

Its never easy for me to translate a poem. I give it a shot.
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On the last day of life, if a guilt sets in the heart
All life got lost in senseless race and I couldn't speak my heart to my beloved..

That life is about to leave the body and I am not able able to express myself
In that moment if the eyes wander to catch a glimpse of the beloved and every sight gets blurred..

That the blood flow in the nerves starts to slow down and each and every moment from the past
starts unfurling in the mind...

That the body lays on the logs waiting for the final pyre
Someone moves forward and give the final spark
and all that was gets lost to ashes and dust...

what is on the last day of life this guilt sets in ...

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

जीवन की विडंबनाओ को दर्शाती के उत्तम रचना...

Unknown said...

Bhut achhi h!

Unknown said...

can you please post a translation to this?

ekta said...

Super ��

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