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जिन दिनों उम्र पर तन्हाई का बुखार था
टूटता शरीर और ह्रदय तार-तार था
चिलचिलाती धुप में छाँव ढूंढ रहा था मैं
वीरानी पड़ी बस्तियों में गाँव ढूंढ रहा था मैं
मेरे हर इक स्वप्न पर वक़्त का प्रहार था
उन दिनों तुम न थे
उन दिनों तुम न थे
रक्त-लेप भाल पर
मैं समय की ताल पर
गर्त नापता गया
अंतर झाँकता गया
समाज रुष्ट जब हुआ मेरे हर सवाल पर
उन दिनों तुम न थे
उन दिनों तुम न थे
स्वाभिमान हार कर असहाय था जब पड़ा
जागता था रात-रात, शोक था जब बड़ा
साँस-साँस में एक बस ही पुकार थी
हार स्वीकार थी, मौत की गुहार थी
निर्वस्त्र बीच बाज़ार में सर झुका था मैं खड़ा
उन दिनों तुम न थे
हाय! तब तुम न थे
दोष शास्त्र ने मढा जब हाथ की लकीर पर
कुंडली भी हंस पड़ी जब भाग्य के फ़कीर पर
न कोई जब विकल्प था
चला लिए संकल्प था
जब हँसा वो योद्धा मेरे खाली तुनीर पर
हाय! तब तुम न थे
उन दिनों तुम न थे
9 comments:
सभी ही अच्छे शब्दों का चयन
और
अपनी सवेदनाओ को अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने.
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपने
...........काबिलेतारीफ बेहतरीन
kundali bhi jab has padi bhagya ke fakeer par....
'chala liye' sankalp tha...
ye dono lines dil ko choo gayi...
"I'll be there for you"
mast chakku bhai .....keep it up!!
i m taking pain in commenting this coz i dont read blogs...but chakku u have made me do it..love u..always!!!
अत्यंत प्रेरणादायक
chakku bhai ..awesome :) dude waiting for more :))
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