वो मैं था
वो मैं था
जो कहता था उस दिन
के सब कुछ यहाँ का
यहीं पर रहेगा
जो सुनते हो तुम ये
आज मेरी जुबानी
ये कविता कोई और
कल फिर कहेगा
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Monday, May 23, 2011
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
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2 comments:
short and sweet... beautiful
sab kuch ek jaisa ni rehta
kal aur aayenge mujhse behtar kehne wale sun ne wale..............
achi prastuti
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