कभी कभी मेरे दिल में ये ख़याल आता है
के इस एक उम्र के तमाम लम्हे ख़ुशी के हो भी सकते थें
पर ये हो न सका
जिंदगी हर एक राह हर एक मंजिल एक नया सफहा खोलती गयी अलिफ़ लैला की दास्तानों सी
और हर एक हर्फ़ एक नए सफ़र के इशारे लेकर
आता रहा ..... जाता रहा
कभी कभी मेरे दिल में ये ख़याल आता है
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
मेरे सच्चे शेर
बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow) दरख़्तों को शिकायत है के तूफ़ाँ ...
-
(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
-
(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
-
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
1 comment:
kabhi kabhi dil me ye khayal aata hai :)
bahut sundar
Post a Comment