Monday, May 2, 2011

तेरा नाम लिख कर मिटाते मिटाते

तेरा नाम लिख कर मिटाते मिटाते
तेरे हर इक ख़त को जलाते जलाते
यूँ लगता है खुद को भुला हम हैं बैठे
तुझे जेहन-ओ-दिल से भुलाते भुलाते

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बढ़िया मुक्तक!

Wierdo said...

4 panktiyon main i dil a dard byaan kar diya....

just too gr8...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुंदर पंक्तियाँ ..... कुछ यादें हमेशा साथ रहती हैं...

shephali said...

bahut sundr :)

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