मुन्तज़िर आपके इशारों के
हैं सभी गुंचा-ओ-गुल बहारों के
ज़ुल्फ़ बिखरे अदा से कुछ यूँ के
रात तुह्फे दे चाँद तारों के
आप खामोश मत रहा करिए
कान होते हैं इन दीवारों के
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)
3 comments:
सुन्दर प्रस्तुति |
आभार ||
शुभकामनाये ||
Thank you sir.
वाह...........
बहुत सुंदर.
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