Thursday, April 19, 2012

मुन्तज़िर आपके इशारों के


मुन्तज़िर आपके इशारों के 
हैं सभी गुंचा-ओ-गुल बहारों के

ज़ुल्फ़ बिखरे अदा से कुछ यूँ के 
रात तुह्फे दे चाँद तारों के 

आप खामोश मत रहा करिए 
कान होते हैं इन दीवारों के 

3 comments:

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति |
आभार ||

शुभकामनाये ||

chakresh singh said...

Thank you sir.

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह...........
बहुत सुंदर.

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