बारहाँ एक ही मंज़र याद आये
इक सिसकता समंदर याद आये
इक सिसकता समंदर याद आये
आज दामन जो है खूंरेज ऐसे
उसके हाथों का खंजर याद आये
उसके हाथों का खंजर याद आये
जब कभी टूटते हैं पैमाने
मुझको बिखरा हुआ घर याद आये
मुझको बिखरा हुआ घर याद आये
खुल रहा है नया सफ़्हा कोई
पिछले किस्से का सिकंदर याद आये
पिछले किस्से का सिकंदर याद आये
कल तलक वो जो था दिल का रिश्ता
वो नहीं दर्मियाँ पर याद आये
वो नहीं दर्मियाँ पर याद आये
-चक्रेश-
2 comments:
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना
Thank you Sir
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