Sunday, July 22, 2012

मैं ही हूँ या हर कोई इस रात से हैरान है



मैं ही हूँ या हर कोई इस रात से हैरान है 
ये अँधेरे मेरे हैं या अंधेर में इंसान है ?

टेक देता पत्थरों पे सर मगर मैं क्या करूँ
जानता हूँ क्या हूँ मैं और कौन वो भगवान् है !

जान लेलोगे मेरी गर सच जुबाँ पर आ गया 
कैसे कह दूं क्या है ख्वाहिश क्या मेरा अरमान है 

देखता हूँ उगते सूरज को उठाकर जब नज़र
 खौलने लगती हैं सांसें उठता फिर तूफ़ान है 

ऐ विधाता जानता ना मैं अभी के क्या है तू 
पर मैं इतना जानता हूँ मुझसे तेरी पहचान है 



1 comment:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया.......

अनु

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