अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Friday, February 19, 2010
आप ही बताइए'
'हाँ, गलत है जो हो रहा है ऐसा नहीं होना चाहिए '
कहता है एक आदमी, कभी आप किसी पान की दूकान पर तो आइये
और संग दो चार अधेड़ और खड़े देखेंगे आप
कहते हुए की भाई साहब, तनिक पान इधर भी तो बढ़ाइए'
देख रहा था दूर से मैं भी वहीं बैठ कर
क्या बात है ये आज गए नहीं क्या अपने दफ्तर या दूर है इनका घर ?
पर तर्क औ वितर्क हर बात पर करना भी नहीं चाहिए
सुन रहा था दूर से मैं , आप भी उसकी बातों का लुफ्त उठाइये
'क्या कहें की अब राजनीत ही जब बदल गयी
महंगाई बढती ही जाती आती जाती सरकारें कई
और उसपर तबादले इमानदार अफसरों के, ऐसा नहीं होना चाहिए
अन्याय है अंधेर है ये, अजी भाई साहब आप ही बताइए'
'कोई बच्चों को पढाना चाहे भी तो आखिर क्या करे
जरा देखिये तो फीस कालेजों की, और फिर महंगाई दरें
और इसपर आप आम आदमी पर 'anti corruption' का विधेयक लेकर आईये
किराया घर का, बिजली-पानी का बिल ऐसे में क्या खाइए क्या बचाइए'
'तंग है वर्दी पुलिस की और है तख्वा बहुत कम
बीमार होकर, घर गृहस्ती तोड़ दे खुद बा खुद दम
वसूली करता है हवलदार सच पर दूसरा सच ऐसे ही न ठुकराइए
खरचा कैसे चलेगा जो आप प्रोजेक्ट पर 'कमीशन' न कमाइए'
'कभी ढूँढने निकलना पड़े जो आप को अपनी प्यारी बेटी को वर
पहले जेब भर लो बेंच के सर्वस्व अपना, छत अपनी औ अपना घर
सबको जमीन, गाडी, दहेज़, मोटी रकम बस चाहिए
भ्रूंड-हत्या भी गलत है , लाचार पिता को अब आप ही समझाइये'
'बास आती है यहाँ हर गली के नाले हैं खुले
खँडहर है किसान का, नेताओं के घर हैं किले
मुझको नहीं अब और खाना आप ही पान खाइए
पूछता हूँ खुद से मैं ये जीवन आखिर क्यूँ जीना चाहिए?'
चक्रेश सिंह
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