रोज जिसे देखकर जीते आये
वो आज नहीं आया तो दम घुट सा गया
वक्त की चाल बेतुकी सी लगी
हर आह में धुवाँ सुलगने सा लगा
हर सू मेरी आँखें प्यासी ही रहीं
कोई आवाज़ दिल-ओ-जाँ तक उतर न सकी
और नब्ज़ डूबने सी लगी
वो आता होगा..
उसे आना होगा...
वो मेरी जिंदगी का मालिक है
मेरे दिल तक उतरता दरिया-ऐ-हयात
मेरे होने का मतलब उससे
मेरी साँसों का वो ही रखवाला
जुबाँ झूठ का सहारा लेकर
मुझे मुझमें कभी समाँ देगी
मगर मैं आज भी समझता हूँ
उस पर्दा-नशीं से आगे
मेरा कोई वजूद नहीं
असल बात तो बस इतनी सी
के उसकी दो निगाहों में
जल रहे नर्म चरागों का
मैं एक तड़पता दीवाना
फ़क़त उस लौ से मेरा मतलब है
फ़क़त इक बार ही मैं जीने आया
उन नर्म सुर्ख होठों पर
धुवाँ- धुवाँ होने के लिए
अपना वजूद खोने के लिए
वो आजा नहीं आया और... दम, घुट सा गया
उसे आना होगा
मेरी साँसों की रवानी के लिए
मेरी ग़ज़लों की जवानी के लिए
उसे आना होगा
इस तपते रेत के समंदर में
दरिया बनकर
उसे आना होगा
मेरी हर आह की खातिर
मेरे जिस्म में चुभते तन्हाई के काँटों की कसक
भी भुलंद हो के कह रही है यही
उसे आना होगा
उसे आना होगा
3 comments:
बहुत सुन्दर
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