तखल्लुस ढूँढने निकला था
फिर शाम, साहिल की गीली रेतों पर
और फिर वही बेनामी लेकर
लौट आया घर को मैं...
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
1 comment:
बहुत खूब ||
आभार ||
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