साहिल मेरी जुबाँ, दरिया है मेरा दिल
दाइम सुबहो-से-शाम, बहता है मेरा दिल
हर्फ़-ऐ-गुहर अक्सर आते हैं लबों तक
यादों की सीपियाँ, रखता है मेरा दिल
मुझसे न पूछिए, सफीनों का डूबना
नाखुदा न जान पाए के क्या है मेरा दिल
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
3 comments:
khoobsurat...
बहुत खूब
निशब्द कर दिया आपने
thanks all ... thanks Shefaali for continuously reading and appreciating my posts ...
Gupta Sir, you have made me indebted for life by continously giving by blog visits... :)
thanks a lot Kumar ...
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