Tuesday, November 22, 2011

साहिल मेरी जुबाँ

साहिल मेरी जुबाँ, दरिया है मेरा दिल

दाइम सुबहो-से-शाम, बहता है मेरा दिल




हर्फ़-ऐ-गुहर अक्सर आते हैं लबों तक
यादों की सीपियाँ, रखता है मेरा दिल


मुझसे न पूछिए, सफीनों का डूबना

नाखुदा न जान पाए के क्या है मेरा दिल

3 comments:

Arvind kumar said...

khoobsurat...

shephali said...

बहुत खूब
निशब्द कर दिया आपने

chakresh singh said...

thanks all ... thanks Shefaali for continuously reading and appreciating my posts ...
Gupta Sir, you have made me indebted for life by continously giving by blog visits... :)
thanks a lot Kumar ...

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