Wednesday, May 23, 2012

----ग़ालिब ---


कोई उम्मीद बर नहीं आती 
कोई सूरत नज़र नहीं आती 


मौत का एक दिन मु'अय्यन है 
नींद क्यों रात भर नहीं आती 


आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी 
अब किसी बात पर नहीं आती 


जानता हूँ सवाब-ए-ता'अत-ओ-ज़हद 
पर तबीयत इधर नहीं आती 


है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ 
वर्ना क्या बात कर नहीं आती 


क्यों न चीख़ूँ कि याद करते हैं 
मेरी आवाज़ गर नहीं आती 


दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता 
बू-ए-चारागर नहीं आती 


हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी 
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती 


मरते हैं आरज़ू में मरने की 
मौत आती है पर नहीं आती 


काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब' 
शर्म तुमको मगर नहीं आती 

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मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)