कोई इलज़ाम दे रहा था हमें
फिर नया नाम दे रहा था हमें
मांगता था तमाम उल्फत मेरी
और अच्छे दाम दे रहा था हमें
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
1 comment:
बहुत सुंदर...........
सशक्त भाव....
अनु
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