Monday, June 4, 2012

जिंदगी की नज़र जीते जी हो चले


जिंदगी की नज़र जीते जी हो चले 
क्या पता कब कहाँ खुद  को हम खो चले 

आखिरी नींद क्या सोच कर सोइए 
जाने अनजाने में कैद फिर हो चले

चाह कर चैन को चैन ही खो दिया 
कर्म फल बांचते कुछ नया बो चले 

भागवद सार फिर घोल कर पी गए
हाथ को युद्ध में रक्त से धो चले 




2 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बेहतरीन....................

बधाई.
अनु

chakresh singh said...

शुक्रिया अनु जी

-ckh-

मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)