सिन्दूरी आँचल शाम के बादल
चंदा का यूँ शर्माना
कितनी मधुर है प्रेम की बेला
कितना मधुर तेरा आना
इन साँसों की तुम सरगम हो
धड़कन की तुम हो शेहनाई
पल भर जो आकर मिलती हो
मिट जाती है सब तन्हाई
क्या मांगे अब वो इश्वर से
सोच में तेरा दीवाना
मन की गलियों में झंकृत हो
बन कर के पायल की धुन
वीणा की जैसे तान कोई हो
मीठा सा इक स्वर रुनझुन
लायी हो इंतना संगीत कहाँ से
मुझको ज़रा ये बतलाना

विधाता की कोई रचना हो तुम
क्या लिखे कहो तुमपे ये कवी
शब्दों में उतारे कोई तुमको
ऐसी कहाँ बोलो है ये छवि
रूप में जल के क्या हाल हुआ है
कैसे कहे ये परवाना
क्या होठों पे तुम रखती हो
हर शब्द कलि बनके ढल्कें
ये नयन दो मद से हैं भरे
मुस्काई जो तुम ये छलकें
सीख भी लो अब रूप पे अपने
थोड़ा सा तुम इठलाना
सिंदूरी आँचल ....
No comments:
Post a Comment