Thursday, December 12, 2013

कुछ दिखाई नहीं देता

तेरी सूरत नहीं दिखती, ये पर्दा है या चश्म-ऐ-धुंध
ये माहौल कैसा दैर-ओ-हरम का है
कुछ दिखाई नहीं देता

ये शंघ-ऐ-मील कैसा राह-ऐ-गुज़र में
ये रास्ता तो तेरे दर तक
जाता दिखाई नहीं देता

बयाँ  क्यूँ कर करूँ खुद को तेरा नाम उलझता है जुबां पे
खामोश रहूँ तो भी मुश्किल
नूर दिखाई नहीं देता



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मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)