Sunday, January 10, 2010

संगीत


मुखरित होता रहा
क्षुब्ध मन सितार पर
और मैं रोता रहा
आत्मा की झंकार पर

संगीत मौन तोड़ता
बहरे इस संसार पर
अभिव्यक्त अव्यक्त करता रहा
अपनी कल्पना निडर

और उसका टोकना
सुर के इस उठान पर
अनसुना कर चला मैं
संवेदना चले जिधर

मौन कुंठा छंदबद्ध हुई
आज है बनी लहर
अनुगूंज आत्मा की
स्पंदित है चारो पहर

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मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)