अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Wednesday, October 13, 2010
शाम होते ही तलास-ऐ-आशियाँ होने लगी
शाम होते ही तलास-ऐ-आशियाँ होने लगी
खुद से बातें छोड़ दीं खामोशियाँ होने लगी
दिल की सब बातें नज़र से बयाँ होने लगी
अब नहीं रोके रुके है
आसूवों का सिलसिला
क्या कहें किनसे है शिकवा
और किनसे था गिला
महफ़िल में आम सब बातें-पिन्हाँ होने लगी...१
रोज़ सोचें हम ठहर कर
और आगे अब कहाँ
दैर हमसे दूर है
दर नहीं कोई यहाँ
शाम होते ही तलास-ऐ-आशियाँ होने लगी...२
इक सदी से छाई रही
वीरानी औ खिजा जहाँ
हम वहीं पर चले सजाने
ख़्वाबों का इक बागबाँ
जिंदगी जीने की फिर हसरत जवाँ होने लगी...३
हमको कब मालूम था
के हम अकेले थें खड़े
वो तमाशाई फकत थें
जिनके खातिर हम लड़े
'चक्रेश' जुदा सब अपनी परछाईयाँ होने लगी...४
यूँ तो तनहा ही सफ़र था
था न कोई कारवाँ
हम किनारों पे कहीं थें
और न था कोई वहां
आज क्यूँ हर हमपे नज़र मेहरबाँ होने लगी...6
Ckh.
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
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5 comments:
यूँ तो तनहा ही सफ़र था
था न कोई कारवाँ
हम किनारों पे कहीं थें
और न था कोई वहां
आज क्यूँ हर हमपे नज़र मेहरबाँ होने लगी...6
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
Beautiful as always.
keep it up yaar....
thanx sir ji
typing mistake actually yahan:
आज क्यूँ हमपे हर नज़र मेहरबाँ होने लगी
hona chaiye tha
खूबसूरत गीत रचना चक्रेश जी ,
बहुत बहुत बधाई आपको !
यूँ तो तनहा ही सफ़र था
था न कोई कारवाँ
हम किनारों पे कहीं थें
और न था कोई वहां
Great said...
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