Thursday, October 28, 2010

रंज बन के जब धुवाँ आँखों पे यूँ ही छा गया

रंज बन के जब धुवाँ आँखों पे यूँ ही छा गया
तब उसे भी पागलों सा खुद पे हँसना आ गया

हार के रोया न होता दिन सारा पर वो रो पड़ा
खुद खुदा आ ख़्वाबों में सजदा करना सिखा गया

आयतों में पीर कहता तो सही सब बात है
वो यहाँ लगता है लेकिन काफी कुछ छुपा गया

आज तू हँसता क्यूँ काफिर हाल पे उसके बता
सोचता हूँ वो क्या हारा, और तू क्या पा गया ?

तू न समझा उम्र के पहलू कभी ऐ नासमझ
और नासमझी में अपनी तू बस सवाल उठा गया

1 comment:

POOJA... said...

behad pyaaree rachna... dard ko shabd mil jaye, isase jyada aur kuchh nahi chahiye...

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