Friday, May 25, 2012

समंदर के राहें तकता जीवन


जाने क्या क्या लिखते आये
जाने क्या क्या कहता दिल था 
यूँ तो कोई बात नहीं थी 
फिर भी बहता रहता दिल था |

स्याही को भी दोष दे बैठा
पन्नों को भी फाड़ के देखा 
वो जो आतुर थें उठने को
उन मुर्दों को गाड़ के देखा
फिर भी शायद तू न समझा 
एक चुभन जो सहता दिल था | 


कैसी खलिश वो कैसी चुभन थी 
खिलते कमल सा खुलता जीवन 
वो जो खुदा था वो ही निहां था 
दरिया सा मिलता जुलता जीवन 
बहते थें सारे मैं भी बहता 
समंदर के राहें तकता जीवन |

4 comments:

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति |
आभार ||

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुंदर.....

बहुत बहुत सुंदर......

अनु

chakresh singh said...

धन्यवाद

pushkar jha said...

waah

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