जाने क्या क्या लिखते आये
जाने क्या क्या कहता दिल था
यूँ तो कोई बात नहीं थी
फिर भी बहता रहता दिल था |
स्याही को भी दोष दे बैठा
पन्नों को भी फाड़ के देखा
वो जो आतुर थें उठने को
उन मुर्दों को गाड़ के देखा
फिर भी शायद तू न समझा
एक चुभन जो सहता दिल था |
कैसी खलिश वो कैसी चुभन थी
खिलते कमल सा खुलता जीवन
वो जो खुदा था वो ही निहां था
दरिया सा मिलता जुलता जीवन
बहते थें सारे मैं भी बहता
समंदर के राहें तकता जीवन |
4 comments:
सुन्दर प्रस्तुति |
आभार ||
बहुत सुंदर.....
बहुत बहुत सुंदर......
अनु
धन्यवाद
waah
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