Wednesday, July 23, 2014

कभी गुमसुम, कभी हैराँ, कभी नाशाद कर देंगी



कभी गुमसुम, कभी हैराँ, कभी नाशाद कर देंगी
तेरी यादें, मेरे हमदम, मुझे बर्बाद कर देंगी


कोई दिन और बाकी हैं शब--फुरकत गुज़रने दो
मुझे मुझसे मेरी साँसे रिहा आज़ाद कर देंगी


नहीं मुमकिन ज़माने से मिले बिन मैं गुज़र जाऊं

मेरी ग़ज़लें कोई शायर, सफर के बाद कर देंगी

1 comment:

shephali said...

तेरी यादें मेरे हमदम मुझे बर्बाद कर देंगी,,,, वाह

मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)