अगर आवाज़ दूँ
तुमको मुझे मिलने
तो आओगी
चलो मेरे नहीं
लेकिन ये वादा
क्या निभाओगी?
बहोत चाहा सनम
तुमको दीवानों सा
मगर देखो
न मेरी हो
सकी फिर भी
उमर भर को
सताओगी
मेरा हर गीत
तुमसे है जो
मैं तुमको सुनाता
हूँ
कहूँ दिल की
तो क्या दिल
से मुझे तुम
सुन भी पाओगी?
वो जुल्फों के खमों
को मैं कभी
सुलझा नहीं पाया
मेरी उलझन को
कंघे से कहाँ
सुलझा भी पाओगी?
मना लूंगा तुम्हें चाहे
मुझे दिल से
गिरा देना
जो मैं रूठा
कभी तो क्या
मुझे भी तुम
मनाओगी
1 comment:
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