Tuesday, March 2, 2010

रंग अकेलेपन के


जब भी अकेला हो जाता हूँ
हूँ न जब हंस पाता
तब याद बहुत आती हो
तब याद बहुत आती हो -2

सपनो में जब जागी आँखों से
मैं दूर निकल जाता हूँ
चिंताओं की तोड़ जंजीरें जब
स्वतंर्त्र स्वयं को पाटा हूँ
तब याद बहुत आती हो -२

मधुबन में जूही कलियाँ
जब हैं पवन संग लहराती
डोर तोड़ जब पतंग कोई
नब है खो jaati
तब याद बहुत आती हो -२

भूली कोई धुन बन्सी की
याद मुझे जब आ जाती
यमुना तीरे गोपी जब कोई
मटकी भरने आती
तब याद बहुत आती हो -२

जब नीले आकाश पर
लाली शाम की छाती
साड़ी रात जब चाँद की
है चाँदनी जगती
तब याद बहुत आती हो -२

रिश्ते स्वार्थ के जब
तान तान तीर चलाते
पौरुष कवच बेद तीर जब
हृदय चीर हैं जाते
तब याद बहुत आती हो -२

जब ठोकर खा गिरता हूँ
और fir सम्हालता हूँ
घावों पर जब खुद ही
हांथों से मलहम मलता हूँ
तब याद बहुत आती हो -२
त्योहारों में दीपों रंगों के
जब होते हैं बेरंग अँधेरे
भीड़ से दूर जब एकांत मांगते
आत्मा-हृदय-तन -मन मेरे
तब याद बहुत आती हो -२

विना की बेसुरी तान पे
राग जब अर्थ खो जाते
जीवन के सपने सागर जब
व्यर्थ अधूरे रह जाते
तब याद बहुत आती हो
हाँ, तब याद बहुत आती हो
तब याद बहुत आती हो.....

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