Sunday, March 21, 2010

हार

दुखता है मन हर हार पर
जाने क्यूँ एय दिल जीत की प्यास भी नहीं
क्या कहें कैसे कहें कौन समझेगा
हमको अपने भी समझे ही नहीं
चल चलें कहीं दूर यहाँ से
चलें उस रेत के सेहरांव पर
कहते हैं साहिल जिसे
चल बनायें वहां एक रेत का घर
कुछ नहीं तो याद अपना
बचपन ही आ जाएगा
तो क्या की उठती लहर के साथ
घर अपना खो जाए गा
चल लिखेंगे नाम अपना
हाथ से हम लहर पर
और हँसेंगे चट्टानों पे नंगे खड़े हो
जीवन के सफ़र पर
सीपियाँ चुन दिन बितायेगें एय दिल
रात वही अपनी कब्र खोद कर
सो जायेंगे
किसी खामोश लहर के आगोश में
सो जायेंगे
रात वही अपनी कब्र खोद कर
हम दोनों ही सो जायेंगे

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