क्यूँ बांधते हो मुझको, चाहत की डोर पर
इक गाँठ छोड़ जाऊँगा मैं और कुछ नहीं
बदनामों की कमी कहाँ, उल्फत की राहों में
एक नाम जोड़ जाऊंगा मैं और कुछ नहीं
नूर बना लिया क्यूँ मुझे मासूम निगाहों का
इक वादा तोड़ जाऊँगा मैं और कुछ नहीं
फ़ना होगा तू, जुलूस होगा जनाजे पे
मुह मोड़ जाऊँगा मैं और कुछ नहीं
मुसाफिर हूँ, रुकना रात तेरे शेहेर में
सुबह सबको छोड़ जाऊँगा मैं और कुछ नहीं
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
मेरे सच्चे शेर
बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow) दरख़्तों को शिकायत है के तूफ़ाँ ...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
3 comments:
बहुत खूब, लाजबाब !
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
dil ko choo gayi
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