कुछ देर से ठहर गया हूँ
गया हूँ चलना भूल
जाने क्या सहता रहा है हृदय
चुभा कौन सा शूल
किस कुरुक्षेत्र का अर्जुन हूँ मैं
लेने हैं किनके प्राण
कौन सी गीता गूँज रही कानों मनी
सिद्ध करना है आखिर कौन सा संधान ?
जलता है मन धुंवा उठता हृदय में
पर पीड़ा समझे कौन ?
गहुँ किसके चरण आज मैं
केशव भी हैं मौन ?
चाह नहीं मुझको कुछ पा लूँ
या करूँ श्रेथता सिद्ध
अपनों के लहू चीथड़ो से ढक दूं धरा को
नोचे उनको गिद्ध
यदि गांडीव धरी धरा पर
क्यूँ उकसाते हो मुझको
व्यर्थ हुंकार भरते हो क्यूँ
क्यूँ जागते हो मुझको ?
नहीं जानते क्या तुम इतना भी
लहू पीते हैं ये तीर
नहीं रोकते रुकते हैं किसिके
उठ जाते हैं जब मुझसे वीर !
आज अगर मैं चुप शांत खड़ा हूँ
और धरा है मौन
नहीं समझ पाओगे तुम
समझा है अब तक कौन?
सृष्टि के नीयम सिद्धांता
एक शून्य जुड़ा है संग
विस्तार देख चुका हूँ उसका
रह गया हूँ निःशब्द औ' दंग
कुछ करूँ भी तो शून्य है सब
न करूँ भी तो शून
देख सब कुछ सोच रहा हूँ
दिन बिताओं कैसे आखें मून
क्या धेय जीवन का है
जब नहीं है कुछ उस पार ?
जब व्यर्थ है चल अचल औ'
नश्वर सब संसार
क्यूँ नहीं समझता है कोई
बात है गंभीर
कहाँ खोलूँ कुंठित मन को
हृदय दिखाओं चीर
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चक्रेश सिंह
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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जिन दिनों उम्र पर तन्हाई का बुखार था टूटता शरीर और ह्रदय तार-तार था चिलचिलाती धुप में छाँव ढूंढ रहा था मैं वीरानी पड़ी बस्तियों में गाँव ढूंढ...
1 comment:
कुछ देर से ठहर गया हूँ
गया हूँ चलना भूल
जाने क्या सहता रहा है हृदय
चुभा कौन सा शूल
किस कुरुक्षेत्र का अर्जुन हूँ मैं
लेने हैं किनके प्राण
कौन सी गीता गूँज रही कानों मनी
सिद्ध करना है आखिर कौन सा संधान ?
DHARDAR PANKTIYAA.........
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