Sunday, March 21, 2010

निः शब्द मन

क्या कहें के दर्द कोई अब कहीं उठता नहीं
जाने ऐसा क्या हुआ के घाव मुझको भा गया.
समाज घर परिवार यहाँ से अब मुझे दिखता नहीं
आँखों के मेरे सामने ये कैसा अँधेरा छा गया.
मौत नहीं अभी आई मुझको इतना तो आभास मुझे
चोंच मारने भूखा परिंदा यहाँ तक फिर क्यूँ आ गया..
गला मेरा सूखता है विश्रांति की अब बस प्यास मुझे
भूख मिटाने के लिए मैं गम अपना सारा खा गया.
अब कोई मुझसे जो पूछे मेरा ऐसा हाल क्यूँ
क्या हुआ के इस चट्टान पर मैं अकेला आ गया
निर्वस्त्र हूँ क्यूँ और यहाँ पर खड़ा फैलाये बाल क्यूँ
अनायास किस बात पर फिर मुझको रोना आ गया.

1 comment:

Dev said...

वाकई मन बिना लब्जो के सम्पूर्ण सार बताने में समर्थ है बहुत खूब मन का चित्त्रण किया है

मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)